दोहराई है यादों ने कहानी तेरी क़तील शिफ़ाई

दोहराई है यादों ने कहानी तेरी

आँखों में है तस्वीर पुरानी तेरी

वो लोग बताएँगे क़यामत क्या है

जिन लोगों ने देखी है जवानी तेरी

आबाद उसी ने दिल की वादी की है क़तील शिफ़ाई

आबाद उसी ने दिल की वादी की है

तारीख़ ने अक्सर ये मुनादी की है

औरत की बड़ाई का ये काफ़ी है सुबूत

औरत से पयम्बरों ने शादी की है

आती है तो खिलती है गुलाबों की तरह क़तील शिफ़ाई

आती है तो खिलती है गुलाबों की तरह

देती है नशा तुंद शराबों की तरह

लेकिन कोई देखे ये जवानी का मआल

बिखरी है पढ़ी हुई किताबों की तरह

टूटी हुई ब़ाँबी में वो बस लेता है क़तील शिफ़ाई

टूटी हुई ब़ाँबी में वो बस लेता है

भूका हो तो कुछ रोज़ तरस लेता है

इस पर भी नहीं साँप को डसता कोई साँप

इंसाँ मगर इंसान को डस लेता है

लम्हों का निशाना कभी होता ही नहीं क़तील शिफ़ाई

लम्हों का निशाना कभी होता ही नहीं

वो सैद-ए-ज़माना कभी होता ही नहीं

हर उम्र में देखा है दमकता वो बदन

सोना तो पुराना कभी होता ही नहीं

लेता था जवानी में कभी जिस की पनाह क़तील शिफ़ाई

लेता था जवानी में कभी जिस की पनाह

वो प्यार नज़र आता है अब उस को गुनाह

क्या हो गया इस उम्र में जाने उस को

या-रब मिरे दिलबर को दिखा सीधी राह

दरयाफ़्त करे वज़्न हवा का मुझ से क़तील शिफ़ाई

दरयाफ़्त करे वज़्न हवा का मुझ से

पूछे वो कभी रंग सदा का मुझ से

डरता हूँ वो मालूम न कर बैठे कहीं

क्या नाता है सावन की घटा का मुझ से

तू हाथ को जब हाथ में ले लेती है फ़िराक़ गोरखपुरी

तू हाथ को जब हाथ में ले लेती है

दुख दर्द ज़माने के मिटा देती है

संसार के तपते हुए वीराने में

सुख शांत की गोया तू हरी खेती है

हर साज़ से होती नहीं ये धुन पैदा फ़िराक़ गोरखपुरी

हर साज़ से होती नहीं ये धुन पैदा

होता है बड़े जतन से ये गुन पैदा

मीज़ान-ए-नशात-ओ-ग़म में सदियों तुल कर

होता है हयात में तवाज़ुन पैदा

करते नहीं कुछ तो काम करना क्या आए फ़िराक़ गोरखपुरी

करते नहीं कुछ तो काम करना क्या आए

जीते-जी जान से गुज़रना क्या आए

रो रो के मौत माँगने वालों को

जीना नहीं आ सका तो मरना क्या आए